जलवायु परिवर्तन एक प्रभाव है वैश्विक तापन का, या कहें तो ग्लोबल वार्मिंग का। वास्तव में, जलवायु परिवर्तन पिछले कुछ वर्षों से, या कहें तो 1980 के आस-पास, यह बहुत चिंता का विषय बना हुआ था। उस समय वैश्विक तापन चिंता का मुख्य कारण था।
जलवायु क्या है?
दीर्घकालीन मौसमीय गतिविधियों का औसत ही जलवायु कहलाता है। यानी 25 से 30 वर्षों का तापमान, आर्द्रता, और वर्षा का मापन ही जलवायु कहलाता है। लंबे समय से मौसमी गतिविधियां जो समय-समय पर बदलती रहती हैं, उनका एक औसत ही जलवायु कहलाता है।
जलवायु परिवर्तन क्या है?
इस जलवायु परिवर्तन में कई जगहों पर तापमान, वर्षा, और आर्द्रता में परिवर्तन आया है। इसी जलवायु परिवर्तन के कारण धरती के मौसम का संतुलन बिगड़ गया है। अगर कहीं बारिश होती है तो अत्यधिक होती है, कहीं सूखा पड़ता है तो अत्यधिक पड़ता है। आपने या टीवी न्यूज़ पर सुना होगा कि इस स्थान पर गर्मी ने पिछले 40 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। किसी ने सुना होगा कि यहां पर वर्षा ने पिछले 25 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। यही इस जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम है।
जलवायु परिवर्तन का मतलब है कि हमारे वातावरण में दीर्घकालिक बदलाव हो रहे हैं, जो दशकों या सदियों तक चलते हैं। ये बदलाव मुख्य रूप से उन गैसों के कारण हो रहे हैं जो कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से पैदा होती हैं। ये गैसें गर्मी को फंसाकर पृथ्वी और महासागरों का तापमान बढ़ा रही हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, तूफानों के पैटर्न बदल रहे हैं, समुद्री धाराओं में बदलाव आ रहा है, बारिश के पैटर्न बदल रहे हैं, और बर्फ और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसके कारण अधिक गर्मी, आग, और सूखा जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। ये बदलाव आगे भी जारी रह सकते हैं और इससे मानव स्वास्थ्य, इमारतों, जंगलों, खेती, पीने के पानी, समुद्र तटों, और समुद्री जीवन पर गंभीर असर पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण क्या हैं?
जलवायु परिवर्तन एक मानव जनित घटना है जिसका मुख्य कारण है शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, और रासायनिक और कीटनाशकों का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करना।
वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना भी एक बड़ा कारण है। जब हमारे धरती पर औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था, तब कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.029% थी। औद्योगिकीकरण के बाद यह मात्रा 0.033% तक बढ़ गई, और आज वैश्विक औद्योगिकीकरण के कारण कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.040% तक पहुंच गई है।
जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग के लिए कौन-कौन सी गैसें जिम्मेदार हैं?
ग्लोबल वार्मिंग के लिए सर्वप्रथम जिम्मेदार गैसें हैं:
- CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड)
- CH4 (मीथेन गैस)
- N2O (नाइट्रोजन ऑक्साइड)
- HFCs
- PFCs
- SF6
- NF3
सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन कहां होता है?
सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन थर्मल पावर प्लांट्स यानी कोयले से बिजली बनाने वाले उद्योगों से होता है। उसके पश्चात सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन औद्योगिकीकरण से होता है, और इसके बाद ट्रांसपोर्टेशन से होता है।
प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों की सूची (Top 10):
- कतर
- कुवैत
- UAE
- सऊदी अरब
- कजाकिस्तान
- ऑस्ट्रेलिया
- यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका
- कनाडा
- ओमान
- तुर्कमेनिस्तान
सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों की सूची (Top 10):
- चीन
- अमेरिका
- भारत
- रूस
- जापान
- जर्मनी
- ईरान
- सऊदी अरब
- साउथ कोरिया
- कनाडा
जलवायु परिवर्तन से धरती पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- Climate change से पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा, और इससे उत्तरी गोलार्ध में बर्फ पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा। समुद्र के जलस्तर बढ़ने से जो समुद्र के किनारे रहने वाले बड़े-बड़े विकसित शहर हैं, वे डूब जाएंगे।
- जब धरती का तापमान और समुद्र का तापमान बढ़ेगा, वहां पर बनने वाले चक्रवात और भी शक्तिशाली हो जाएंगे और अधिक मात्रा में बनने लगेंगे। इससे किनारों पर बसे शहरों को भारी नुकसान होगा।
- तापमान बढ़ने से महामारी फैलाने वाले बैक्टीरिया और वायरस अधिक मात्रा में फैलेंगे, जिससे विभिन्न देशों में महामारी का अत्यंत विकराल रूप देखने को मिलेगा।
- समुद्र का तापमान बढ़ने से अधिक बादल बनेंगे, और इस कारण वर्षा अधिक होगी। अधिक वर्षा से बाढ़ जैसी स्थिति और बादल फटना जैसी घटनाएं अधिक होंगी, जिससे जन-धन की हानि होगी।
- वर्षा का सही ढंग से वितरण नहीं हो सकेगा, जिससे कहीं पर अधिक बारिश होगी और कहीं पर कम। कहीं पर सूखा ज्यादा पड़ेगा और कहीं पर कम।
- मानसून में बार-बार बदलाव के कारण यह मानव और फसलों के लिए अत्यंत हानिकारक होगा।
खाद्यान्न संकट:
Climate change के कारण सही समय पर बारिश का न होना, और गर्मी, बारिश, और ठंड के समय पर परिवर्तन न होने से फसलों को भारी नुकसान होगा। उनकी उत्पादकता निम्न स्तर पर पहुंच जाएगी, और छोटे एवं गरीब देशों में भुखमरी जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जो बहुत भयावह होगी।
जलवायु परिवर्तन के कारण मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य पर सीधा और अप्रत्यक्ष रूप से दोनों तरह से असर डालता है। अत्यधिक गर्मी की लहरें, समुद्र के स्तर में वृद्धि, और वर्षा में बदलाव से बाढ़ और सूखा हो सकता है, जो चोट, बीमारी, और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकते हैं। तेज़ तूफानों से भी गंभीर नुकसान हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन का असर पर्यावरण में बदलाव के माध्यम से भी स्वास्थ्य पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों में इज़ाफा हो सकता है। तापमान और बारिश में बदलाव के कारण कीटों और अन्य जीवों के व्यवहार और उनकी संख्या में परिवर्तन हो सकता है, जिससे संक्रामक बीमारियों का फैलाव बढ़ सकता है। समुद्र के तापमान में वृद्धि और बारिश में बदलाव से पानी से जुड़ी बीमारियों के मामले भी बढ़ सकते हैं। जलवायु परिवर्तन का असर खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ सकता है, जिससे भोजन की उपलब्धता और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के खतरे समय के साथ बढ़ सकते हैं, जिससे लचीलेपन और दीर्घकालिक स्वास्थ्य में बदलाव हो सकते हैं। ये खतरे अलग-अलग समय, जगह, और जनसंख्या के हिसाब से अलग-अलग तरीके से प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए शोध और जागरूकता बढ़ाना बहुत ज़रूरी है।